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सुनार (वैकल्पिक सोनार या स्वर्णकार) भारत के स्वर्णकार समाज से सम्बन्धित जाति है जिनका मुख्य व्यवसाय स्वर्ण धातु से भाँति-भाँति के कलात्मक आभूषण बनाना, खेती करना तथा सात प्रकार के शुद्ध व्यापार करना है। यद्यपि यह समाज मुख्य रूप से हिन्दू को मानने वाला है लेकिन इस जाति का एक विशेष कुलपूजा स्थान है। सुनार अपने पूर्वजों के धार्मिक स्थान की कुलपूजा करते है। यह जाति हिन्दूस्तान की मूलनिवासी जाति है। मूलत: ये सभी क्षत्रिय वर्ण में आते हैं इसलिये ये क्षत्रिय सुनार भी कहलाते हैं। आज भी यह समाज इस जाति को क्षत्रिय सुनार कहने में गर्व महसूस करता हैं।[1]

मैढ़ क्षत्रिय अपनी वंश बेल को भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ पाते हैं।कहा गया हैं कि भगवान विष्णु के नाभि-कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई।ब्रह्माजी से अत्री और अत्री जी की शुभ दृष्टि से चंद्र-सोम हुए। चंद्रवंश की 28 वीं पीढ़ी में अजमीढ़ जी का जन्म हुआ। जैसा कि पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि स्वर्णकार समाज के आदिपुरुष महाराजा अजमीढ़जी का जन्म त्रेतायुग के अन्त में हुआ था। राजस्थान में प्रसिद्ध अजमेर, (जिसका प्राचीन नाम अज्मेरू था) शहर बसाकर मेवाड़ की नींव रखने वाले महाराज अजमीढ़ जी, मैढ़क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष माने जाते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम के समकालीन ही नहीं अपितु उनके परम मित्र भी थे।

उनके दादा महाराजा श्रीहस्ति थे जिन्होंने प्रसिद्ध हस्तिनापुर बसाया था। महाराजा हस्ति के पुत्र विकुंठन एवं दशाह राजकुमारी महारानी सुदेवा के गर्भ से महाराजा अजमीढ़ जी का जन्म हुआ।इनके अनेक भाईयों में से पुरुमीढ़ और द्विमीढ़ विशेष प्रसिद्ध हुए और दोनों पराक्रमी राजा थे। द्विमीढ़जी के वंश में मर्णान, कृतिमान, सत्य और धृति आदि प्रसिद्ध राजा हुए।पुरुमीढ़ जी के कोई संतान नहीं हुई।

अजमीढ़ जी जेष्ठ पुत्र होने के कारण हस्तिनापुर राजगद्दी के उतराधिकारी हुए और बाद में अजमीढ़जी प्रतिष्टानपुर (प्रयाग) एव हस्तिनापुर दोनों राज्यों के भी सम्राट हुए। प्रारंभ में चन्द्रवंशीयों की राजधानी प्रयाग प्रतिष्टानपुर में ही थी। हस्तिनापुर बसाये जाने के बाद प्रमुख राज्यगद्दी हस्तिनापुर हो गई। इतिहासकारों के अनुमान के मुताबिक ई.पू. 2000 से ई.पू. 2200 वर्ष में उनका राज्यकाल रहा।

राजा हस्ती के जयेष्ठ पुत्र अजमीढ़ महान चक्रवर्ती राजा चन्द्रवंशी थे।महाराजा अजमीढ़ के दो रानियां सुयति व नलिनी थी।इनके गर्भ में बुध्ददिषु, ऋव, प्रियमेध व नील नामक पुत्र हुए।उनसे मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज का वंश आगे चला। अजमीढ़ ने अजमेर नगर बसाकर मेवाड़ की नींव डाली।महान क्षत्रिय राजा होने के कारण अजमीढ़ धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे।वे सोने-चांदी के आभूषण,खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप सुपुत्रों को भेंट किया करते थे।वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है।

समाज के सभी समाजजनों द्वारा इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा को अजमीढ़ जी जयंती मनाते हैं। विशेषकर स्वर्णकार समाज हर साल शरद पूर्णिमा को उनकी जयंती को महोत्सव के रूप में मनाता है। पूरे देश में शोभायात्रा और कलश यात्रा निकाली जाती हैं। समाज के गणमान्य लोगों और समाज के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों का सम्मान भी किया जाता है।

स्वर्णकला में पारंगत थे महाराजा अजमीढ़जी/Maharaja Ajmidhji was successful in Swarnakala

उल्लेखनीय है कि त्रेता युग में जब परशुरामजी क्षत्रियों से कुपित होकर उनका संहार कर रहे थे। ऐसे आपातकाल में वन स्थित ऋषि-मुनियों ने उन्हें शरण दी। महाराज अजमीढ़जी क्षत्रियों की दयनीय दशा देखकर काफी चिंतित रहने लगे। उन्हें स्वर्णकला का ज्ञान था, उन्होंने राज्य का कार्यभार युवराज संवरण को सौंपा। वे खुद वानप्रस्थ आश्रम निकल गए। उन्होंने आश्रम स्थापित कर वहां  क्षत्रियों को संरक्षण दिया। उन्होंने स्वर्णकारी की शिक्षा देकर उनको सम्मान प्रदान किया। भगवान राम ने जब सीता स्वयंवर में शिवधनुष को भंग किया तो रामजी से परशुरामजी का वार्तालाप हुआ। उसके बाद परशुरामजी का क्षत्रियों के प्रति क्रोध शांत हुआ। जो क्षत्रिय स्वर्णकला में पारंगत हो गए थे, उन्होंने तो स्वर्णकला को अपनाए रखा। आज उनके द्वारा दी गई शिक्षा से स्वर्णकार समाज आगे उन्नति कर रहा है।

मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकारों के गोत्र और कुलदेवियां/Tribes and clans of Maid Kshatriya goldsmiths

स्वर्णकार समाज में कई गोत्र हैं और उनकी कुलदेवियों का भी उल्लेख मिलता है। जिसमे हम आपको बता रहे हैं मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकारों के गोत्र और कुलदेवियों के बारे में।
  • अन्नपूर्णा माता – खराड़ा, गंगसिया, चुवाणा, भढ़ाढरा, महीचाल, रावणसेरा, रुगलेचा।
  • अमणाय माता – कुझेरा, खीचाणा, लाखणिया, घोड़वाल, सरवाल, परवला।
  •  अम्बिका माता – कुचेवा, नाठीवाला।
  •  आसापुरी माता – अदहके, अत्रपुरा, कुडेरिया, खत्री आसापुरा, जालोतिया, टुकड़ा, ठीकरिया, तेहड़वा, जोहड़, नरवरिया, बड़बेचा, बाजरजुड़ा, सिद, संभरवाल, मोडक़ा, मरान, भरीवाल, चौहान।
  •  कैवाय माता – कीटमणा, ढोलवा, बानरा, मसाणिया, सींठावत।
  • कंकाली माता – अधेरे, कजलोया, डोलीवाल, बंहराण, भदलास।
  • कालिका माता – ककराणा, कांटा, कुचवाल, केकाण, घोसलिया, छापरवाल, झोजा, डोरे, भीवां, मथुरिया, मुदाकलस।
  • काली माता – बनाफरा
  • कोटासीण माता – गनीवाल, जांगड़ा, ढीया, बामलवा, संखवाया, सहदेवड़ा, संवरा।
  •  खींवजा माता – रावहेड़ा, हरसिया।
  •  चण्डी माता – जांगला, झुंडा, डीडवाण, रजवास, सूबा।
  • चामुण्डा माता – उजीणा, जोड़ा, झाट, टांक, झींगा, कुचोरा, ढोमा, तूणवार, धूपड़, भदलिया/बदलिया , बागा, भमेशा, मुलतान, लुद्र, गढ़वाल, गोगड़, चावड़ा, चांवडिया, जागलवा, झीगा, डांवर, सेडूंत।
  •  चक्रसीण माता –चतराणा, धरना, पंचमऊ, पातीघोष, मोडीवाल, सीडा।
  • चिडाय माता- खीवाण जांटलीवाल, बडग़ोता, हरदेवाण।
  • ज्वाला माता -कड़ेल, खलबलिया, छापरड़ा, जलभटिया, देसवाल, बड़सोला, बाबेरवाल, मघरान, सतरावल, सत्रावला, सीगड़, सुरता, सेडा, हरमोरा।
  • जमवाय माता – कछवाहा, कठातला, खंडारा, पाडीवाल, बीजवा, सहीवाल, आमोरा, गधरावा, धूपा, रावठडिय़ा।
  •  जालपा माता – आगेचाल, कालबा, खेजड़वाल, गदवाहा, ठाकुर, बंसीवाल, बूट्टण, सणवाल।
  •  जीणमाता – तोषावड़ ।
  • तुलजा माता – गजोरा, रुदकी।
  • दधिमथी माता- अलदायण, अलवाण, अहिके,उदावत, कटलस, कपूरे, करोबटन, कलनह, काछवा, कुक्कस, खोर, माहरीवाल।
  • नवदुर्गा माता – टाकड़ा, नरवला, नाबला, भालस।
  • नागणेचा माता – दगरवाल, देसा, धुडिय़ा, सीहरा, सीरोट।
  • पनवाय माता – रगल, रुणवाल, पांडस।
  • पद्मावती माता- कोरवा, जोखाटिया, बच्छस, बठोठा, लूमरा।
  • पाढराय माता– अचला।
  • पीपलाज माता- खजवानिया, परवाल, मुकारा।
  • बीजासण माता – अदोक , बीजासण, मंगला, मोडकड़ा, मोडाण, सेरने।
  • भद्रकालिका माता –नारनोली।
  • मुरटासीण माता – जाड़ा, ढल्ला, बनाथिया, मांडण, मौसूण, रोडा।
  • लखसीण माता – अजवाल, अजोरा, अडानिया, छाहरावा, झुण्डवा, डीगडवाल, तेहड़ा, परवलिया, बगे, राजोरिया, लंकावाल, सही, सुकलास, हाबोरा।
  • ललावती माता – कुकसा, खरगसा, खरा, पतरावल, भानु, सीडवा, हेर।
  • सवकालिका माता – ढल्लीवाल, बामला, भंवर, रूडवाल, रोजीवाल, लदेरा, सकट।
  • सम्भराय माता – अडवाल, खड़ानिया, खीपल, गुगरिया, तवरीलिया, दुरोलिया, पसगांगण, भमूरिया।
  • सरुण्ड माता – सरुण्डिया
  • संचाय माता – डोसाणा।
  • सुदर्शन माता – मलिडा।